एमु वॉर इतिहास का सबसे हैरतंगेज वॉर
एमु वॉर + इतिहास का सबसे हैरतंगेज वॉर
हेलो दोस्तों कैसे है आप। में आपका दोस्त मनोज कुमार आपके लिए लेकर आया हूँ एक ऐसा वाक्य जिसके बारे में शायद ही अपने कभी सुना हो। एक ऐसा वॉर जो पक्षी और आर्मी के बीच हुआ। जी हाँ एमु वॉर+इतिहास का सबसे हैरतंगेज वॉर जिसे ‘एमु वॉर‘ या ‘द ग्रेट एमु वॉर‘ के नाम से जाना जाता है। इस ऑपरेशन के इंचार्ज मेजर मर्डिथ थे।इस वॉर के बारे में पढ़कर आप सोचने पर मजबूर हो जाओगे के क्या एक पक्षी युद्ध लड़ सकता है। जी हाँ दोस्तों इसे पढ़कर आप कहोगे के पक्षी युद्ध लड़ सकते है वो भी पूरी युद्ध नीति के साथ। तो जानते है एमु वॉर के बारे में।
इतिहास की वो रोचक घटना जो साल 1932 में हुई
एमु एक विशालकाय पक्षी है। जिसे ऑस्ट्रेलिआ का राष्ट्रीय पक्षी भी कहते है। दोस्तों साल 1932 में एक ऐसी अनोखी घटना घटी । दोस्तों पहले विश्व युद्ध के बाद जो सैनिक सेवानिवृत हुए थे। उनको खेती करने के लिए या ये कहे जीवन यापन करने के लिए जमीने दी थी। जिससे वो खेती करके अपना जीवन गुजर बसर कर सके। जब किसानो ने वहां खेती करना शुरू किया तब एक दिन उन्होंने देखा के उनकी फसल को कोई बर्बाद कर गया है। फिर अगले दिन उन्होंने देखा कि एमुओं का झुण्ड उनकी फसल को बर्बाद करने के लिए आ रहा है।
एमुओं का झुण्ड
जब किसानो ने देखा तो वह हैरान रह गए। वो एक या दो ऐमू नहीं बल्कि 20000 की संख्या में थे। किसान ये समझ ही नहीं पाए के ये क्या हो रहा है। एमुओं का झुण्ड आया और फसल को बर्बाद करके चला गया। अगली बार किसानो ने खेत के चारो तरफ फेंसिंग लगाई जिससे फसल सुरक्षित रहे। एक बार फिर एमुओं का झुण्ड आया और फसल को बर्बाद करके चला गया और फेंसिंग को भी तोड़ दी। इससे किसान बहुत दुखी हुए। फिर आखिर में उन्हने इसके बारे में सरकार से बात करना उचित समझा। और फिर किसानो का एक ग्रुप सरकार से बात करने गया। किसानों समस्या को गंभीरता से लेते हुए ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री ने सेना की एक टुकड़ी को उनके साथ भेजा।
2 नवम्बर 1932
दिन था 2 नवम्बर 1932 का जब सेना ने खेतो में जाकर अपना मोर्चा संभाला। उन्होंने देखा के 50 – 60 एमुआ का झुण्ड उनकी तरफ आ रहा है। जब उन्होंने उन पर फयरिंग के लिए निशाना लगाया तो एमु ये समझ गए के उन पर हमला होने वाला है और वह वापस तेजी से भाग गए और सेना की मशीन गन की रेंज से बहार हो गए। सेना भी ये देखकर चकित रह गई।
4 नवंबर 1932 को भी ऐसा ही हुआ। लगभग 1000 एमुओं के झुण्ड ने फिर से हमला किया। और जैसे ही सेना ने उन पर हमला करने की कोशिश की तो उनकी मशीनगन जाम हो गई। और एमु फिर मशीनगन की रेंज से बहार हो गए। मगर फिर भी सेना ने 10-12 एमुओं को मर गिराया। लेकिन एमु इस हमले के बाद से काफी सतर्क हो गए थे।
एमु की चालाकी
दोस्तों इस हमले के बाद एमुआ ने अपने आप को छोटे छोटे ग्रुप में बाँट लिया। और हर एक ग्रुप में एक एमु उनकी निगरानी का काम करता था। ताकि जब हमला हो तो वो अपने ग्रुप को अलर्ट कर सके हमले से बचने के लिए। इसके बाद से वो फिर से हमला करके फसल को बर्बाद करते रहे और जब उन्हें लगता के उन पर हमला होने वाला है तो वो वहां से भाग निकलते।
दोस्तों यह युद्ध 6 दिन तक चला और इस दौरान लगभग 25000 राउंड फायर हुए जिसमे लगभग 50 एमुआ को मर गिराया गया। दोस्तों इतनी मशक्कत के बाद सेना सिर्फ 20000 एमुओं में से सिर्फ 50 ऐमू को ही मर पाई। फिर एक दिन इस लड़ाई की खबर मीडिया को लग गई। और पुरे देश में ये बात फेल गई इससे चारो तरफ सरकार की बदनामी होने लगी। सरकार ने इससे बचने के लिए सेना को वापस बुला लिया।
सेना को दोबारा भेजा गया
मीडिया में मामला शांत होने के बाद 13 नवम्बर 1932 को सेना को दोबारा भेजा गया किसानो की मदद के लिए। लेकिन इस बार भी पक्षियों ने सेना को धूल चटा दी। और आखिर कार एमुओं ने सेना को हार मानने और वहाँ से जाने पर मज़बूर कर दिया। सेना हार मानकर वापस चली गई।
दोस्तों इस ऑपरेशन के इंचार्ज मेजर मर्डिथ का कहना था कि अगर उनके पास एमुओं की तरह एक बटालियन होती और वह गोली चला सकती तो वो दुनिया की किसी भी आर्मी का मुक़ाबला कर सकते थे।
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