कनखजूरा क्या है

हेलो दोस्तों कैसे हो आप। आज हम बात करेंगे कनखजूरा के बारे में आज हम जानेंगे के कनखजूरा कितना खतरनाक हो सकता है और इसके काटने से क्या हो सकता है। कनखजूरा जिसे अलग अलग जगह पर अलग अलग नाम ने जाना जाता है। जैसे गोजर, कनखजूरा, इत्यादि। इसे सेंटीपीड भी कहा जाता है जो कि एक लेटिन शब्द है जिसका मतलब सो टांगो वाला होता है। कनखजूरे का शरीर खंडो में बना होता है और हर एक खंड में एक जोड़ी टंगे होती है। इसके सिरे पर एक जोड़ी एंटीना, और एक जोड़ी आँखे होती है। कनखजूरे की आंखे बहुत कमजोर होती है और यह सही से देख नहीं पाता। इनकी कुछ प्रजातियो में तो आंखे ही नहीं होती है। यह एक बहुत ही शातिर जीव होता है तथा नमी वाले स्थान पर ज्यादा दिखाई पड़ता है।

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कनखजूरे के काटने पर क्या होगा

लोगो का ये सोचना है के अगर कनखजूरा काट ले तो उससे किसी की मृत्यु भी हो सकती है। पर ऐसा नहीं है इसके काटने से किसी की मृत्यु नहीं होती है बल्कि कुछ कनखजूरों के काटने से उस स्थान पर तेज जलन होना, खुजली लगना आदि की शिकायत होने लगती है। वैसे तो यह किसी को काटता नहीं है पर अगर इसे कोई छेड़े तो यह आक्रामक हो जाता है और काट लेता है। यह अपने आगे बने दो डंको की सहायता से काटता है। इसके काटने से कभी कभी किसी इंसान को साँस लेने में परेशानी हो सकती है। लेकिन मृत्यु नहीं।

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कनखजूरे का इतिहास

यह आर्थोपोडा संघ का जीव है जो लगभग भारत तथा अन्य देशो की सभी जगह पाया जाता है। यह चीलोपोडा वर्ग में आता है। यह अपना शिकार पकड़ने के लिए अपने एंटीना की मदद लेता है। एंटीने से यह शिकार के कम्पन्न को भांप लेते है और उस पर हमला कर देते है। कनखजूरे के लगभग 8000 प्रजातियां खोजी जा चुकी है। परन्तु इसके विपरीत हम केवल 3000 प्रजातियो के बारे में सही से जान पाए है। कनखजूरे की कुछ प्रजातियो की आंखे नहीं होती है।

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कनखजूरे में प्रजनन क्रिया

एक व्यस्क कनखजूरे का सर लाल रंग का होता है। कनखजूरों में नर और मादा आपस में संयुग्मन नहीं करते है बल्कि नर अपने कोष ( शुक्राणु कोष ) रास्तो पर जगह जगह रख देता है जो मादा अपनी जरुरत के हिसाब से उठा लेती है और समय आने पर अपने अंडे देती है। अंडो को देने के तुरंत बाद ही मादा अपने अंडो को मिटटी से ढकने लगती है ताकि कोई जीव उसके अंडो न खा जाये। अंडो पर एक लिसलिसा पदार्थ लगा होता है जिसके कारन अंडो पर मिटटी चिपक जाती है और अंडे सुरक्षित हो जाते है।

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कनखजूरे का वर्गीकरण

जगत : जंतु

खंड : यूसिलोमेटा

संघ : आर्थोपोडा

उपसंघ : मेंडीबुलेटा

वर्ग : चिलोपोडा

गण : स्कुटीजीरोमार्फा

कनखजूरे के बारे में रोचक जानकारियां

  • कनखजूरे का शरीर लगभग 20 से 30 खंडो का बना होता है तथा इसके हर एक खंड पर एक जोड़ी पैर होते है।
  • इसका शरीर चपटा होता है। इसके शरीर का रंग भूरा तहत चटकीला होता है।
  • इसकी एक जोड़ी आंखे होती है जो बहुत ही कमजोर होती है।
  • इंग्लैंड में मिला खनखजूरे का जीवाश्म लगभग 32 करोड़ 60 लाख साल पुराना है जिसकी लम्बाई लगभग 8.9 फुट है।
  • कनखजूरे की अब तक लगभग 8000 प्रजातियां मिल चुकी है।
  • जिओफिलीडे समूह के कनखजूरों में लगभग 191 जोड़ी तक टाँगें मिल जाती हैं।
  • वैसे तो कनखजूरे को लेटिन भाषा में सेंटीपीड भी कहा जाता है जिसका मतलब 100 टांगो वाला होता है पर असलियत में कनखजूरे में 100 पैर नहीं होते है। 
  • कनखजूरे की कुछ प्रजातियो के काटने से बहुत दुःख एवं जलन बहुत होती है।
  • कनखजूरे में टाँगों की संख्या विषम जोड़े में होती है। जैसे 15, 17 या 19 जोड़ी टाँगें न कि 16, 18 इत्यादि।
  • कनखजूरे में हड्डी नहीं होती है। लेकिन इनका बाहरी आवरण एक सख्त क्यूटिकल का बना होता है जो बाहरी जीव से इनकी रक्षा करता है।
  • यह एक एकलिंगी जीव है।
  • कुछ लोगो का मानना है कि अगर कनखजूरा कान में घुस जाये तो उसमे कला नमक या समुद्री नमक का पानी डालने से कनखजूरा तुरंत ही बहार निकल आता है क्योकि नमक के पानी के कारन कनखजूरे का दम घुटने लगता है।
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